सुप्रीम कोर्ट की शिवराज सरकार पर गिरी गाज
तीन जिलों के लिये बनाना पड़ा शिकायत प्राधिकरण
मामला आदिवासियों को पुलिस एवं वन विभाग द्वारा प्रताडि़त करने का
भोपाल 01 सितम्बर 2012। सुप्रीम कोर्ट के एक निर्णय की गाज प्रदेश की शिवराज सरकार पर गिर गई है तथा इस निर्णय के पालन में राज्य सरकार को अपने गृह विभाग के माध्यम से राज्य के तीन जिलों बैतूल,हरदा एवं खण्डवा के लिये जिला स्तरीय शिकायत निवारण प्राधिकरण के गठन के आदेश जारी करने पड़े। सुप्रीम कोर्ट ने एक्टिविस्ट अनुराग मोदी-शमीम मोदी के उक्त जिलों में सक्रिय संस्था ''''''''श्रमिक आदिवासी संगठन" द्वारा लगाई विशेष अनुमति याचिका सिविल क्रमांक 15115/2011 में पन्द्रह दिन पूर्व उक्त तीन जिलों के लिये शिकायत निवारण प्राधिकरण बनाने का आदेश दिया था। यह मामला उक्त जिलों में बरसों से रह रहे आदिवासियों को पुलिस,वन विभाग एवं अन्य शासकीय प्राधिकारियों द्वारा प्रताडि़त करने का है।
राज्य के गृह विभाग ने जारी अधिसूचना में कहा है कि शिकायत निवारण प्राधिकरण में एक अध्यक्ष एवं चार अन्य सदस्य होंगे। मप्र उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश राज्य के किसी सेवानिवृत्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश को प्राधिकरण का अध्यक्ष नामनिर्दिष्ट करेंगे तथा अन्य सदस्य उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश द्वारा राज्य मानव अधिकार आयोग के अध्यक्ष, लोकायुक्त तथा राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष के परामर्श से नियुक्त किये जायेंगे। सम्बन्धित जिले के विधिक सेवा प्राधिकरण का सचिव इस शिकायत प्राधिकरण का पदेन सचिव होगा। प्राधिकरण के अध्यक्ष एवं सदस्यों को 2 हजार रुपये प्रति माह मानदेय दिया जायेगा। सुप्रीम कोर्ट के उक्त प्रकरण में, उच्चतम न्यायालय द्वारा दिये गये निर्देशों तथा की गई अनुशंसाओं के अनुपालन में, प्राधिकरण विधिक प्रक्रिया का पालन करेगा तथा उसका अनुसरण करेगा।
सरकार ने औपचारिकता निभाई है :
श्रमिक आदिवासी संगठन के मुख्य कार्यकत्र्ता अनुराग मोदी ने मुम्बई से फोन पर बताया कि राज्य सरकार ने प्राधिकरण के गठन की मात्र औपचारिकता निभाई है क्योंकि मात्र दो हजार रुपये के मानदेय पर काम करने के लिये कोई भी रिटायर्ड जिला एवं सत्र न्यायाधीश तथा अन्य सदस्य काम करने के लिये तैयार नहीं होंगे। मोदी ने बताया कि फिलहाल उनका लक्ष्य है कि यह प्राधिकरण मूर्त रुप ले काम करना शुरु करे तथा प्रभावित आदिवासी अपनी व्यथा दर्ज कराने के लिये इस प्राधिकरण में एप्रोच करें। इसके अलावा उनका संगठन देशभर के अन्य जनसंगठनों को सुप्रीम कोर्ट के आदेश से गठित इस प्राधिकरण के बारे में बतायेगा।
पैंसठ प्रकरण दर्ज हैं आदिवासियों पर :
अनुराग मोदी ने बताया कि उक्त तीन जिलों में वन विभाग की भूमि पर निरन्तर अवैध उत्खनन हो रहा था तथा वन विभाग के लोग कम परिश्रमिक पर आदिवासियों से काम करवा रहे थे और उनका हर तरह से शारीरिक एवं मानसिक शोषण कर रहे थे। उनके संगठन ने वहां के आदिवासियों के साथ मिलकर इस अवैध उत्खनन एवं शोषण के खिलाफ आवाज उठाई जिसके कारण सरकार के दबाव में पुलिस एवं वन विभाग ने आदिवासियों सहित इस संगठन के लोगों पर अतिक्रमण एवं वन्य प्राणी अधिनियम के उल्लंघन के झूठे प्रकरण दर्ज कराये। वर्ष 2004 से अब तक ऐसे पैंसठ प्रकरण दर्ज किये गये। इस पर संगठन पहले हाईकोर्ट गया जहां रिलीफ नहीं मिलने पर उसने सुप्रीलम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका लगाई जिस पर प्राधिकरण करने का पहला फैसला आया है। दिलचस्प बात यह है कि श्रमिक आदिवासी संगठन की शिकायतों पर राज्य एवं केन्द्र के मानव अधिकार आयोगों ने भी कोई कार्यवाही नहीं की थी।
- डॉ. नवीन जोशी
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